भारतीय संगीत में ठुमरी को समझें – Thumri In Music
Instructions: Sign (k) = Komal Swar, (t) = Teevra Swar, Small Alphabets = Lower Octave, Capital Alphabets = Higher Octave. See Harmonium Theory Click Here Key Name details with diagram.
What is Thumri In Indian Classical Music
आसान भाषा में ठुमरी की परिभाषा (Definition Of Thumri) : छोटा मधुर गीत, जिसे गाते समय प्रायः कई रागों का मिश्रण कर दिया जाता है।
ठुमरी भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक गायन शैली है। ठुमरी में रस, रंग और भाव की प्रधानता होती है। अर्थात जिसमें राग की शुद्धता की तुलना में भाव सौंदर्य को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। ठुमरी मुख्यतः उत्तर प्रदेश के प्रेम कविताओं एवं लोकगीतों से जुड़ी हुई है। यह एक ऎसी शैली है जिसमें विविध भावों को प्रकट किया जा सकता है तथा जिसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है। जैसा की हमने परिभाषा में समझा, यह रागों के मिश्रण की शैली भी है, जिसमें एक राग से दूसरे राग में गमन की भी छूट होती है और रंजकता तथा भावाभिव्यक्ति इसका मूल मंतव्य होता है। ठुमरी की इन्ही सारी खूबियों की वज़ह से इसे अर्ध-शास्त्रीय गायन की श्रेणी में रखा जाता है।
भारतीय संगीत में ठुमरी की उत्पत्ति…
ठुमरी की उत्पत्ति लखनऊ के नवाब वाज़िद अली शाह के दरबार से मानी जाती है। जबकि कुछ लोगों का मानना है कि नवाब वाज़िद अली शाह ने इसे मात्र प्रश्रय दिया और उनके दरबार में ठुमरी गायन नई ऊँचाइयों तक पहुँचा, क्योंकि वे खुद ‘अख्तर पिया’ के नाम से ठुमरियों की रचना करते और गाते थे। हालाँकि मूलतः इसे ब्रज शैली की रचना माना जाता है और इसकी अदाकारी के आधार पर फिर से पंजाबी अंग की ठुमरी तथा पूरबी अंग की ठुमरी में बाँटा जाता है। पूरबी अंग की ठुमरी के भी दो रूप 1. लखनऊ और 2. बनारस की ठुमरी के रूप में प्रचलित हैं।
ठुमरी का प्रारूप… (Format Of Thumri)
ठुमरी की बंदिश छोटी होती है और श्रृंगार रस प्रधान होती है। भक्ति भाव से ओत प्रोत ठुमरियों में भी ज्यादातर राधा-कृष्ण के प्रेमाख्यान से विषय चुने जाते हैं। ठुमरी में प्रयुक्त होने वाले राग भी चपल प्रवृत्ति के होते हैं जैसे: खमाज, भैरवी, तिलक कामोद, तिलंग, पीलू, काफी, झिंझोटी, जोगिया इत्यादि। ठुमरी सामान्यतः छोटी (कम मात्रा वाली) वाली तालों में प्रस्तुत या गायी जाती हैं जिनमें कहरवा, दादरा, और झपताल प्रमुख हैं। इसके आलावा दीपचंदी और जतताल का ठुमरी में काफ़ी प्रचलन है। राग की तरह ही इस विधा में एक ताल से दूसरे ताल में जाने की छूट भी होती है।
वर्तमान समय में ठुमरी… (Thumri in Present Time)
वर्तमान समय में इस विधा (ठुमरी) की ओर रूचि के कम होने का कारण शास्त्रीय गायन ही में रूचि का ह्रास है। बनारस के जाने-माने ठुमरी गायक पं॰ छन्नूलाल मिश्र के अनुसार वर्त्तमान समय में ठुमरी गाने वाले कम हो गए हैं और बनारस घराने की गायकी की इस विधा को सीखने-सिखाने का दौर भी मंद पड़ गया है। वहीं दूसरी ओर प्रयोग के तौर कुछ लोगों द्वारा वर्तमान समय में ठुमरी को पश्चिमी संगीत के साथ जोड़ कर ठुमरी के पारंपरिक वाद्यों, तबला, हारमोनियम, सारंगी और ढोलक के अलावा इसमें ड्रम्स, वॉयलिन, की-बोर्ड और गिटार के साथ अफ्रीकी ड्रम जेम्बे, चीनी बांसुरी और ऑर्गेनिक की-बोर्ड पियानिका जैसे वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल भी इस्तेमाल किया जा रहा है।
आशा करते हैं आपको इस लेख से ठुमरी के बारें में महत्वपूर्ण जानकारी मिली होगी। अधिक जानकारी के लिए हमारी वेबसाईट सरगम बुक को बुकमार्क करना ना भूलें।