स्वर की परिभाषा | Definition of Swar in Hindi
Instructions: Sign (k) = Komal Swar, (t) = Teevra Swar, Small Alphabets = Lower Octave, Capital Alphabets = Higher Octave. See Harmonium Theory Click Here Key Name details with diagram.
Definition of Swar in Hindi
ध्वनियों में हम प्रायः दो भेद रखते हैं, जिनमें एक को ‘स्वर’ और दूसरे को ”कोलाहल’ या ‘रव’ कहते हैं। कुछ लोग बातचीत की ध्वनी को भी एक भेद मानते हैं। साधारणतः जब कोई ध्वनि नियमित और आवर्त कम्पंनों से मिलकर उत्पन्न होती है तो, उसे स्वर कहते हैं। इसके विपरीत जब कंपन अनियमित तथा पेचीदे या मिश्रित हों तो उस ध्वनि को ‘कोलाहल’ कहते हैं। बोलचाल की भाषा की ध्वनि को स्वर और कोलाहल के बीच की श्रेणी में रखा जाता है। संक्षेप में यह समझिए की नियमित आन्दोलन – संख्यावली ध्वनि “स्वर” कहलाती है। यही ध्वनि संगीत के काम में आती है, जो कानो को मधुर लगती है तथा चित्त को प्रसन्न करती है। इस ध्वनि को संगीत की भाषा में “नाद” कहते हैं। इस आधार पर संगीतोपयोगी नाद स्वर कहलाता है।
भारतीय संगीतज्ञों ने एक स्वर (ध्वनि) से उसकी दुगुनी ध्वनि तक के क्षेत्र में ऐसे संगीतोपयोगी नाद बाईस माने हैं, जिन्हें “श्रुतियाँ” कहा गया है। ध्वनि की प्रारंभिक अवस्था “श्रुति” और उसका अनुर्नात्मक (गुंजित) स्वरूप ही “स्वर” कहलाता है।
२२ श्रुतियों में से ७ निकाले गए हैं और उन्हें इस नाम से जाना जाता है :
१. सा – षडज
२. रे – ऋषभ
३. ग – गांधार
४. म – मध्यम
५. प – पंचम
६. ध – धैवत
७. नि – निषाद
स्वर के दो स्वरूप होते हैं :
१. शुद्ध स्वर
२. विकृत स्वर
इसी प्रकार शुद्ध और विकृत मिलाकर एक सप्तक में १२ स्वर माने जाते हैं।
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